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{{KKRachna
|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पहले अपना मुआयना करना
फिर ज़माने पे तब्सरा करना
एक सच्ची पुकार काफी है
हर घड़ी क्या ख़ुदा - ख़ुदा करना
ग़ैर मुमकिन भी है गुनाह भी है
पर को परवाज़ से जुदा करना
अहमियत वे अना की क्या जानें
खूँ में जिनके है याचना करना
आप ही अपने काम आएँगे
सीखिए ख़ुद से मशवरा करना
</poem>
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|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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पहले अपना मुआयना करना
फिर ज़माने पे तब्सरा करना
एक सच्ची पुकार काफी है
हर घड़ी क्या ख़ुदा - ख़ुदा करना
ग़ैर मुमकिन भी है गुनाह भी है
पर को परवाज़ से जुदा करना
अहमियत वे अना की क्या जानें
खूँ में जिनके है याचना करना
आप ही अपने काम आएँगे
सीखिए ख़ुद से मशवरा करना
</poem>