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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
अच्छे-अच्छे बचते हैं
सच को दार समझते हैं

तुमसे तो काँटे अच्छे
सीधे-सीधे चुभते हैं

फूलों की दूकानों के
पत्थर तक भी महकते हैं

सबके बस का रोग़ नहीं
जिसे फ़कीरी कहते हैं

फूल महकने वाले तो
खिलते-खिलते खिलते हैं
</poem>