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{{KKRachna
|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अच्छे-अच्छे बचते हैं
सच को दार समझते हैं
तुमसे तो काँटे अच्छे
सीधे-सीधे चुभते हैं
फूलों की दूकानों के
पत्थर तक भी महकते हैं
सबके बस का रोग़ नहीं
जिसे फ़कीरी कहते हैं
फूल महकने वाले तो
खिलते-खिलते खिलते हैं
</poem>
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अच्छे-अच्छे बचते हैं
सच को दार समझते हैं
तुमसे तो काँटे अच्छे
सीधे-सीधे चुभते हैं
फूलों की दूकानों के
पत्थर तक भी महकते हैं
सबके बस का रोग़ नहीं
जिसे फ़कीरी कहते हैं
फूल महकने वाले तो
खिलते-खिलते खिलते हैं
</poem>