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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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आंखों की वीरानी पढ़ कर देखो ना
क्या क्या टूटा दिल के अंदर देखो ना
लम्हा लम्हा रात कहाँ तक आ पहुंची
खिड़की से कमरे के बाहर देखो ना
क्या होता है दर्द छुपाने का अंजाम
तुम भी अपने अांसू पी कर देखो ना
छोड़ के हमको तुम लोगों ने क्या पाया
सच्चाई से आंख मिला कर देखो ना
शायद मेरे आंसू तुम को रोक सकें
फिर मुझको इक बार पलट कर देखो ना
</poem>
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आंखों की वीरानी पढ़ कर देखो ना
क्या क्या टूटा दिल के अंदर देखो ना
लम्हा लम्हा रात कहाँ तक आ पहुंची
खिड़की से कमरे के बाहर देखो ना
क्या होता है दर्द छुपाने का अंजाम
तुम भी अपने अांसू पी कर देखो ना
छोड़ के हमको तुम लोगों ने क्या पाया
सच्चाई से आंख मिला कर देखो ना
शायद मेरे आंसू तुम को रोक सकें
फिर मुझको इक बार पलट कर देखो ना
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