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04:17, 27 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
क्यों करे हल सवाल और कोई
रास्ता ख़ुद निकाल और कोई
आप और हम तो सिर्फ मुहरे हैं
चलता रहता है चाल और कोई
मैं वफ़ा पर सफ़ाई कब तक दूं
कीजिये अब सवाल और कोई
जान रख ली गयी हथेली पर
क्या तुझे दूं मिसाल और कोई
ज़ख़्म कहने लगे सियासत के
अब करे देख-भाल और कोई
</poem>