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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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<poem>
देखें तमाम ज़ुल्म व सितम कुछ नहीं कहें
गर बोल दें हुज़ूर तो हम कुछ नहीं कहें
बच्चों की तरह डांट के रखना दबाव में
वो आएं घर तो दीदा ए नम कुछ नहीं कहें
तुम उनको कर रहे हो डराने की कोशिशें
क्या मेरी तरफ़ एहले क़लम कुछ नहीं कहें
ये वक़्त ठीक अगर नहीं कहने के वास्ते
सब डायरी में कर दें रक़म कुछ नहीं कहें
तेरी तमाम बात सुनें सर झुका के हम
यानी तेरे जवाब में हम कुछ नहीं कहें
</poem>
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देखें तमाम ज़ुल्म व सितम कुछ नहीं कहें
गर बोल दें हुज़ूर तो हम कुछ नहीं कहें
बच्चों की तरह डांट के रखना दबाव में
वो आएं घर तो दीदा ए नम कुछ नहीं कहें
तुम उनको कर रहे हो डराने की कोशिशें
क्या मेरी तरफ़ एहले क़लम कुछ नहीं कहें
ये वक़्त ठीक अगर नहीं कहने के वास्ते
सब डायरी में कर दें रक़म कुछ नहीं कहें
तेरी तमाम बात सुनें सर झुका के हम
यानी तेरे जवाब में हम कुछ नहीं कहें
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