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मीठी लगने लगती छाया जैसे पूँछ हो बन्दर की
आसमान से सूरज उतरा, मूँछें थानेदारों -सीआँखें करे अंगारों जैसी, पोशाक बंजारों -सी
लू लपटों की लगी दुकानें लटकें फूल पलाशों के
मेहमानों-सी आऊ गरमी, दिन हैं खेल-तमाशों के
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