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14:16, 20 फ़रवरी 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=एस. मनोज
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<poem>
करिया बादल बरखा देत
बरखा बुन्नी पड़तै खेत
खेतमे तखनहि उगतै धान
अपना सभहक माँछ मखान
कृषक मजूर ल भेंटतै काम
नहिये रहतै कियो बेकाम
फसल उपजतै भेंटतै पाय
नबका कपड़ा देतै माय
डबरा पोखरि हेतै पानि
सभे खुछ अछि ई सभ जानि
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