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07:30, 27 फ़रवरी 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ओम नीरव
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|संग्रह=
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<poem>
मात्र जीने के लिए नीरव जिया ही क्यों?
पी रहा है रश्मियाँ अपनी दिया ही क्यों?
तुम ग़ज़ल में ज़िंदगी की यों कहीं आते,
बन गये मेरी ग़ज़ल में काफिया ही क्यों?
सह लिया चुपछाप सब अपवाद लेकिन अब,
सोचता हूँ ओठ मैंने-सी लिया ही क्यों?
दो कदम मंज़िल से पहले जो न गिरता तो,
कोसता कोई नहीं मैंने पिया ही क्यों?
ज़िंदगी जीकर चला हूँ मौत जीने अब,
पढ़ रहे तुम पागलों से मरसिया ही क्यों?
रात को दिन पी रहा या रात पीती दिन,
कुछ कहो लेकिन लगाते शर्तिया ही क्यों?
एक उलझा प्रश्न उलझा ही भले रहता,
हल समझ नीरव तुझे पैदा ही क्यों?
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आधार छंद-रजनी
मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गा
</poem>