Changes

जलाता रहा रात भर / ओम नीरव

1,279 bytes added, 07:33, 27 फ़रवरी 2019
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम नीरव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeetika}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम नीरव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeetika}}
<poem>
दीप जलता जलाता रहा रात भर।
बात क्या-क्या बनाता रहा रात भर।

ढाई' आखर नहीं बोल पाया मुआ,
जाने' क्या-क्या सुनाता रहा रात भर।

एक रोटी टँगी-सी लगी व्योम में,
चाँद यों ही जगाता रहा रात भर।

साँझ होते कहाँ लोप सूरज हुआ,
प्रश्न यह ही सताता रहा रात भर।

साँझ को प्यार करने सवेरा चला,
द्वार को खटखटाता रहा रात भर।

निज प्रभा को छिपा भानु खद्योत की-
अस्मिता को बचाता रहा रात भर।

———————————-
आधार छन्द–वाचिक स्रग्विणी
मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,612
edits