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15:24, 28 फ़रवरी 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रामानुज त्रिपाठी
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|संग्रह=
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<poem>
बादल लिखने लगे
कथाएं प्यास की।
रात-रात जलपरी घटाओं की
बाहों में सो-सो कर,
एक चम्पई भोर जोगिनी
किरण घाटियों में बोकर
आई चिट्ठी लेकर
सावन मास की ।
सोई हुई नदी को चंचल
झरनों के शिशु जगा गए,
पावस के जलते पावों में
लेप इन्द्रधनु लगा गए
चुप्पी - टूटी-
सन्यासी आकाश की।
यादों के सारस पंखों में
लेकर नए प्रसंग उड़े,
कुछ भीगे और कुछ अनभीगे
बंूदों से संन्दर्भ जुड़े,
खुली किताबें -
मौसम इतिहास की।
</poem>