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16:40, 2 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सन्नी गुप्ता 'मदन'
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ससुरारी कै बात निराली ठोको ताली ठोको ताली ।
पावै भले सैकड़ो गाली ठोको ताली ठोको ताली।।
जीजा जीजा जीजा आये
सरहज साली खूब मगन बा।
सास -ससुर मूड़े-गोड़े के
आज दमादेम लाग लगन बा।
फूफा जी प्रणाम कब आया
कहिकै कुल सरपुतिया दउड़े।
सिकुड़ा रहे जवन चकरोटेस
हुए एक्प्रेस वे यस चउड़े।
आज खात कै लागत बाटै दस प्लेट के साथे थाली।
ससुरारी कै बात निराली ठोको ताली ठोको ताली।
सेवा देख फूल यस आपन
यनहु मगन भये जेस देवा।
पहिले मिला नाशतम घुघुरी
दुसरे दिन बा चना भिगोवा।
गिरत बाय रोजे ग्राफ अब
माँगे मिलत बाय अब पानी।
रुका हए छा सात दिने से
देत हए गोरु का सानी।
ओवरटाइम करत हए यहि नाय रहि गए तंचो खाली।
ससुरारी कै बात निराली ठोको ताली ठोको ताली ।
लाज शरम चूल्ही मा बरि गै
बिना बुलाये बने गवाहिया।
हँसि कै बूढ़ा पूछ परी की
भइया अब टेरेन बा कहिया।
यनहु लाज शरम कुल धोये
चिटकी कली जैस मुस्काये।
चला जाब उठ कै भिनसारवै
कपड़ा मलकिनियै लै आये।
देखि-देखि अपने जीजा का हसत बाय ऊ छोटकी साली।
ससुरारी कै बात निराली ठोको ताली ठोको ताली।।
</poem>
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