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|रचनाकार=सन्नी गुप्ता 'मदन'
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<poem>
चला गाँव तुहका टहराई बिस्सा बिगहा तुहै सुनाई।
छोड़ा ई हाइवे कै चक्कर चला मेड़ चकरोट घुमाई।
काल कलौता खेलत लड़के
लड़के बना हये यहि बड़के।
दादा करत हये निगरानी
करया न लड़केव केव बेइमानी।
नहरा बाढ़ बाय खुब जमकै
परै रौशनी तौ ई चमकै।
भैसी का साथे नहवावै
तब ओका लइ जाय चरावै।
डेढ़ डेढ़ भै तीन औ सवा सवा जोड़बा तौ बने अढ़ाई।
छोड़ा ई हाइवे कै चक्कर चला मेड़ चकरोट घुमाई।
दादी बनी हई यहि बिटिया
खेलै छुटकिक साथे गोटिया।
पोसम्पर कहू केव गावै
राजा रानी केहू सुनावै।
तू हमार तख्ती घोटार द्या
बदले मा तू हल्या आम ल्या।
तू वापस करबू की नाही
यक पुड़िया उधार बा स्याही।
चला फ्राई पिन के बदले देखा लेवा लाग कराही
छोड़ा ई हाइवे कै चक्कर चला मेड़ चकरोट घुमाई।
दुइ ठी चुरन मिलै यक रुपयम
मिला रहै ललका वहि करियम।
बड़े मज़े से बचपन बीतै
केहू न हारै सब केव जीतै।
केतना तोहका हाल सुनाई
दुनियक शब्द कमै परि जाई।
लाख जतन कै केव समझावै
काश उहै फिर बचपन आवै।
रोय-रोय हम झुरान पाका अपने माइक फिरू देखाई।
छोड़ा ई हाइवे कै चक्कर चला मेड़ चकरोट घुमाई।।।
</poem>
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