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16:27, 4 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मनोज मानव
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<poem>
छोड़िये कभी धरा न आसमान के लिए.
कीजिये न ज़िन्दगी तबाह शान के लिए.
घूमते रहे विचार नेक ही दिमाग में,
छोड़िये न रिक्तता कभी गुमान के लिए.
कर्म जो किये नहीं घटा दिये जमा सभी,
वे कुपुत्र हैं कलंक खानदान के लिए.
पुत्र भूल ये गया पढ़ा लिखा उसे दिया,
स्वप्न देखता रहा पिता मकान के लिए.
गाय के कटान को बता रहे वही सही,
स्वाद सिर्फ़ चाहिए जिन्हें जुबान के लिए.
मोक्ष के लिए सदैव प्रार्थना करे वही,
जो निकालता न एक भाग दान के लिए.
देखिये सदैव दौर कौन-सा चला नया,
कर्म कीजिये कभी न सिर्फ़ आन के लिए.
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आधार छन्द-चामर (15 वर्णिक)
सुगम मापनी-गाल 7 $ गा
पारम्परिक सूत्र-र ज र ज र
</poem>