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आइये, पधारिये / दरवेश भारती

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<poem>
आइये, पधारिये
बज़्मे-दिल सँवारिये

वक़्त बेलगाम है
हौसला न हारिये

माले-मुफ़्त है वतन
लूटिये, डकारिये

आप तो हैं हुक्मरान
शेखियाँ बघारिये

हो सके तो डूबती
क़ौम को उबारिये

सो रही हों क़िस्मतें
ज़ोर से पुकारिये

उम्र अधेड़ है ज़रूर
मन न अपना मारिये
</poem>
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