795 bytes added,
15:41, 8 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दरवेश भारती
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
आइये, पधारिये
बज़्मे-दिल सँवारिये
वक़्त बेलगाम है
हौसला न हारिये
माले-मुफ़्त है वतन
लूटिये, डकारिये
आप तो हैं हुक्मरान
शेखियाँ बघारिये
हो सके तो डूबती
क़ौम को उबारिये
सो रही हों क़िस्मतें
ज़ोर से पुकारिये
उम्र अधेड़ है ज़रूर
मन न अपना मारिये
</poem>