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17:30, 9 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हरि नारायण सिंह 'हरि'
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<poem>
बहुएं-बेटे आये घर गुलजार हो गया!
आँगन खिल-खिल बच्चों से इस बार हो गया!
अधिक रौशनी दीपों में दिख रहा बंधु है।
पुलकित होता रह-रह कर हृद-प्यार-सिंधु है।
घर-दरवाजे भरे-भरे से आज हमारे,
मन अपना तो हरा-हरा इतबार हो गया!
बहुओं की पायल से रुनझुन घर-आँगन है!
बेटे बैठे साथ हृदय का खिला सुमन है!
पोते-पोती खेल रहे किलकारी दे-दे,
मित्र! हमारा स्वर्गिक यह संसार हो गया!
छठ की रौनक और गयी बढ़, पुलकित है मन,
माताएँ आनंदित हो व्रत करतीं पावन।
हम भी संततिवाले हैं अहसास हो रहा,
बहुत दिनों पर आनंदित परिवार हो गया!
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