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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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देखऽ सावन में जरऽ हे शरीर
ओ भोला बाबा कहिया बरसैबा तूँ नीर
कहिया बरसैबा तूँ नीर ओ बाबा
सूख गेलै तालअउ सूख गेलै तलैया
हाय-राम कइसन अयलइ समइया
बहे चाहे पछिया या बहे पुरबइया
सुख्लन नदी में कइसे चलतइ नइया
के हरतइ गरीबा के पीर।
ओ भोला बाबा ...
देखऽ सावन में जरऽ हे शरीर।ओ भोला बाबा कहिया बरसैबा तूँ नीर।कहिया बरसैबा तूँ नीर ओ बाबा।सूख गेलै तालअउ सूख गेलै तलैया।हाय-राम कइसन अयलइ समइया।बहे चाहे पछिया या बहे पुरबइया।सुख्लन नदी में कइसे चलतइ नइया।के हरतइ गरीबा के पीर। ओ भोला बाबा ...रिमझिम फुहार ले तरसऽ हे अँखिया।अँखियाझूला पर बइठ के निहारऽ हे सखिया।सखियागरजऽ हे ऊपर जब काली रे बदरिया।बदरियाढोलक झाँझ से गूँजऽ हे नगरिया।नगरियापुकारऽ हे राजा-फकीर। फकीरओ भोला बाबा ...
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