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बजार / उमेश बहादुरपुरी

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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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कहाँ प्यार हे, कउन यार हे, बोलऽ कहाँ बहार हे?
मत फुसलाबऽ हमरा तूँ ई दुनियाँ एक बजार हे।।हे
पिरीत लगइलूँ तब हम जानलूँ, हे कइसन ई दुनियाँ?
सूरत भोली-भाली हे अंदर से सभे निगुनियाँ।निगुनियाँऊपर-ऊपर प्यार जताबे अंदर से व्यापार हे।। हेमत ...पहिल नजर में आँख मिलइलन दिल के ऊ सहलइलन।सहलइलनसबके सामने हाँथ पकड़ के प्यार के राह देखइलन।देखइलनधोखा खइलूँ प्यार में हम तब जानलुँ की संसार हे? मत ....कहलन हल तोरे संग जिअम तोरे संग हम मरम।मरमसातो जनम में रूप बदल के प्यार तोरा से करम।करमहमरा आझ पता चल गेलै कइसन उनखर इकरार हे? मत ....देवी समझ के पुजलुँ हल जब असली रूप हम देखहुँ।देखहुँशरम से आँख लजा गेल हम्मर अप्पन माथा ठोकलुँ।ठोकलुँपकड़ के हाँथ झटकलन तब जानलुँ की हम्मर यार हे? मत ....चाहे तनहा जीअइ सबदिन, तनहा चाहे मरिअइ।मरिअइना बाबा ना बाबा अब हम प्यार न ऐसन करबइ।करबइसाड़ी जइसन जेयार बदल दे न´् नञ् ओक्कर इंतजार हे।। हेमत ....जिंदा लाश बना के छोड़लन याद में उनखर जीअ ही।हीमयखाना से हो गेल नाता अब जिए ले पीअ ही।।हीउजड़ गेल हे हम्मर दुनियाँ पर उनखर गुलजार हे।। हेमत ....
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