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Kavita Kosh से
|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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अप्पन धरती बनाबऽ तों, अप्पन असमान बनाबऽ।बनाबऽअदमी तो सभे हे तों, अलग पहचान बनाबऽ।।बनाबऽकी करबऽ कुक्कुर जइसन, जिनगी जी करके।करकेतों अप्पन धरम आउ, अप्पन ईमान बनाबऽ।।बनाबऽ
वीर तो ऊहे हे जे नञ् डरऽ हे, आउ नञ् केकरो डराबऽ हे
सामने में कोय भी आ जाए, ऊ त सब्भे के हराबऽ हे
हम शोर मचाबेवाला नञ् ही, झकझोर देबेवाला ही
अंधरिया रात में भी कर हम, इंजोर देबेवाला ही
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