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06:06, 16 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रुडयार्ड किपलिंग
|अनुवादक=तरुण त्रिपाठी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं छै ईमानदार सेवादार बंदे रखता हूँ
(उन्होंने मुझे सिखाया
वो सब जो मैं जाना)
उनके नाम हैं क्या, क्यों, कब
और कैसे और कहाँ और कौन..
मैं उन्हें भेजता हूँ
धरती और समंदर के पार
भेजता हूँ उन्हें
पूरब और पश्चिम
पर जब वे मेरे काम कर चुके होते हैं,
मैं उन्हें विराम दे देता हूँ।
मैं उन्हें आराम करने देता हूँ
नौ से पांच तक,
कि उस बीच मैं व्यस्त रहता हूँ,
साथ ही नाश्ते, खाने और चाय के वक़्त भी
अरे, क्योंकि उन्हें भी तो भूख लगती है!
हालाँकि विभिन्न लोक के विभिन्न विचार हैं
मैं एक कमउम्र को जानता हूँ―
वह रखती है सौ लाख सेवादार बंदे
जिन्हें बिलकुल भी आराम नहीं मिलता
वह उन्हें दूर-दूर तक भेजती है, अपने कामों के लिए―
उसी क्षण से जब उसकी आँख खुल जाती है―
दस लाख कैसे, बीस लाख कहाँ
और सत्तर लाख क्यों!
</poem>