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|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
जियरा म आवा थै घुंघुटवा उघारी
पनवा खवाई तोर गलवा निहारी
पिंजरा म सुगना फँसाव मैना
तनी जियरा कै अगिया बुताव मैना

तोहका बोलावा थै फुलान अरहरिया
पियरा कै खेतवा कोहान दुपहरिया
लाल लाल एडरी देखाव मैना
तनी जियरा...

लुका छिपी खेली चला नदिया किनारे
मछरी क मन भवा कटिया सहारे
अंगुरी से अंगुरी छुवाव मैना
तनी जियरा...

निंदिया न आवे मुला आवा थै सपनवा
पतरी कमरिया औ बड़रे नयनवा
अंजुरी से पनिया पियाव मैना
तनी जियरा

</poem>