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|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
बाटै गोड़ घहरात
झूरै पेट बा पिरात

पाका पिरकी भये हमरे दवाई नाहीं बा
हमका रामौ जी के घर सुनवाई नाहीं बा

पिया गये परदेस
आवा कल्हिया सनेस

घरे भेजैं काव तनिको कमाई नाहीं बा
हमका रामौ जी के घर सुनवाई नाहीं बा

कहां जाई काव खाई
तुहीं बोला गंगा माई

तोहरे गोड़वा म फाटा थै बिवाई नाहीं बा
हमका रामौ जी के घर सुनवाई नाहीं बा

ताकै छिनरा मोहार
लागी केकरी गोहार

हियां जबरा के घरे भौजाई नाहीं बा
हमका रामौ जी के घर सुनवाई नाहीं बा

</poem>