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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
साँवरे श्याम से दिल लगाती रही हूँ
इस तरह खुद को भी आजमाती रही हूँ

जिंदगी का फ़साना बहुत खूबसूरत
मैं उसे खुद ही पढ़ती पढ़ाती रही हूँ

आप मानो न मानो यही है मुहब्बत
मैं जिसे दिल में रखती सजाती रही हूँ

देखती ही रही हूँ नज़ारे जहाँ के
पत्थरों से लिपट चोट खाती रही हूँ

बैठ कर के समन्दर किनारे कभी मैं
उठ रही हर लहर में नहाती रही हूँ

</poem>