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16:03, 18 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मचलती है बाहों में सरिता की धारा
मैं साथी हूँ उस का उसी का किनारा
विषम ग्रीष्म में शुष्क जब धार होती
दिया साथ है जब भी उस ने पुकारा
उमगती है बरसात या मनचली यह
उतरता है हम पर ही तो क्रोध सारा
सदा रोष के पात्र अपने ही होते
हैं अपने ही तो बढ़ के देते सहारा
वो बाहों में है मेरी जब टूट गिरती
नहीं तुमने देखा कभी वह नजारा
</poem>