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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
शम्मा आँसू बहाती रही रात भर
लौ भी तो थरथराती रही रात भर
खूब तूफ़ान थे थीं हवाएँ चलीं
कश्तियाँ डगमगाती रहीं रात भर
गम की बदली गली बूंद मोती बनी
पंखुरी पर लजाती रही रात भर
आस का कोई तारा ना धुंधला पड़ा
याद बिजली गिराती रही रात भर
ओट में बदलियों के छिपा चाँद पर
रश्मियाँ झिलमिलाती रहीं रात भर
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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शम्मा आँसू बहाती रही रात भर
लौ भी तो थरथराती रही रात भर
खूब तूफ़ान थे थीं हवाएँ चलीं
कश्तियाँ डगमगाती रहीं रात भर
गम की बदली गली बूंद मोती बनी
पंखुरी पर लजाती रही रात भर
आस का कोई तारा ना धुंधला पड़ा
याद बिजली गिराती रही रात भर
ओट में बदलियों के छिपा चाँद पर
रश्मियाँ झिलमिलाती रहीं रात भर
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