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<poem>

दिन कहाँ वो बहार फूलों के
अब हैं दुश्मन हजार फूलों के

ग़म भी है ज़िंदगी का इक हिस्सा
साथ हैं जैसे ख़ार फूलों के

बागबाँ बात क्या है काँटों की
हर तरफ हैं हिसार फूलों के

कह दो अहले चमन उदास न हो
लाएगी दिन बहार फूलों के

हाय गुलपोशियाँ सियासत में
जान लेते हैं हार फूलों के

लोग काँटों से बच के चलते हैं
हम हुए हैं शिकार फूलों के

सच है चेहरे उतार देता है
उसके रुख़ का निखार फूलों के

कितने दिलकश हैं कितने प्यारे हैं
रंग परवरदिगार फूलोके--

</poem>