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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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<poem>
हर एक शहर सुलगता दिखाई देता है
उमीद क्या थी मगर क्या दिखाई देता है

अजब फरेब की आदत लगी है दुनिया को
हर एक चेहरे पे चेहरा दिखाई देता है

तेरे दयार में सब खूबरू तो हैं लेकिन
कहाँ कोई तेरे जैसा दिखाई देता है

ए काश अब्रे करम टूट कर बरस जाये
तमाम सहरा ही प्यासा दिखाई देता है

जो तेरे हिज्र मे टपके हैं आँख से आँसू
हर एक अश्क में दरिया दिखाई देता है

सुना है चाँद सितारे नज़र चुराते हैं
जब उन को आपका चेहरा दिखाई देता है

तुम्हारे नाम से बदनाम हो रहे हैं हम
हमारा इश्क पनपता दिखाई देता है</poem>