भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रौनक़ तुम्हारे दम से है लैल ओ नहार की
तुम आबरू हो आमदे फ़स्ले बहार की
लफ़्ज़ों में हम बयां नहीं कर पाएंगे कभी
कैसे सहर हुई है शब ए इंतज़ार की
आ जा कि तेरे अहद ए वफ़ा का भरम रहे
रह जाए आबरू भी मेरे ए'तिबार की
हर मौज़ पर लिखा है मेरा हाल जान ए मन
क्या क़ैफ़ियत बताऊँ दिल ए बेक़रार की
हम तुम से दूर रह के तुम्हारे हैं आज भी
हम ने तो ऐसे रीत निभाई है प्यार की
अहले चमन की आँख से आँसू निकल पड़े
मौसम ने रुख़सती जो सुनाई बहार की
जो सब पे रहम करते हैं इस कायनात में
रहमत उन्हीं पे होती है परवरदिगार की
उनके बगैर दिल का ये आलम है अब 'सुमन'
बुझती हुई शमा हूँ मैं जैसे मज़ार की
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रौनक़ तुम्हारे दम से है लैल ओ नहार की
तुम आबरू हो आमदे फ़स्ले बहार की
लफ़्ज़ों में हम बयां नहीं कर पाएंगे कभी
कैसे सहर हुई है शब ए इंतज़ार की
आ जा कि तेरे अहद ए वफ़ा का भरम रहे
रह जाए आबरू भी मेरे ए'तिबार की
हर मौज़ पर लिखा है मेरा हाल जान ए मन
क्या क़ैफ़ियत बताऊँ दिल ए बेक़रार की
हम तुम से दूर रह के तुम्हारे हैं आज भी
हम ने तो ऐसे रीत निभाई है प्यार की
अहले चमन की आँख से आँसू निकल पड़े
मौसम ने रुख़सती जो सुनाई बहार की
जो सब पे रहम करते हैं इस कायनात में
रहमत उन्हीं पे होती है परवरदिगार की
उनके बगैर दिल का ये आलम है अब 'सुमन'
बुझती हुई शमा हूँ मैं जैसे मज़ार की
</poem>