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|रचनाकार=उमेश कुमार राठी
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ना ही बंधन ना सीमायें
चहुँ तरफा फैली आशायें
अनुप्राणित हर जीवन रखता
मुदित मौन मन अभिलाषायें
होता हृदय बहुत ही कुंठित
पीड़ा देती जब चिंतायें
थक जाता एकांतवास भी
सह सहके कटु जीव व्यथायें
ना ही बंधन ना सीमायें
चहुँ तरफ़ा फैली आशायें
मानव मन का अद्भुत चिंतन
कभी रुलाये कभी हँसाये
हृदय सरित की गहन उर्मियाँ
पता नहीं कब शोर मचायें
ना ही बंधन ना सीमायें
चहुँ तरफ़ा फैली आशायें
हर्षित हो जाता है मनवा
जब मुस्काती मधु कलिकायें
सुष्मित होत हृदय की वृंदा
निरख हरित बौरात लतायें
ना ही बंधन ना सीमायें
चहुँ तरफ़ा फैली आशायें
</poem>
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