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सोन चिड़ैया / एस. मनोज

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सोन चिड़ैया, सोन चिड़ैया
उड़िके छत पर आउ
छत पर अछि जे दाना छीटल
ओकरा चुनि-चुनि खाउ

चीं-चीं करैत, अहाँ छी आबैत
बाध बोनमे रंग जमाबैत
धूरि आउ तरुके फुनगी सँ
कनिको दाना खाउ

रुप अहाँ अनुपम पयलहुँ अछि
नयनक तृप्त अहाँ कयलहुँ अछि
छत पर आकें दृश्य मनोहर
कनिको त' देखाउ

नीड़ अहाँकेँ बीहड़ वनमे
नवस्फूर्ति रहैत अछि तनमे
गगन बिहारी बनल रहै छी
कनिको त' सुस्ताउ

चुन्नू-मुन्नू बजा रहल अछि
बाटक देखू सजा रहल अछि
दाना खाकें, पानी पीकें
कनिको त' बिलमाउ

हिलमिल सैदखन अहाँ रहै छी
आपसमे नहि भेद करै छी
रहनाय, खयनाय संग-साथमे
हमरो अर समझाउ
</poem>
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