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जागो / बाल गंगाधर 'बागी'

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श्मशान जागो रात में हमेशा मुर्दे जलाये जाते हैंसूरज न आने वाला हैमगर दलित तो जिंदा जलाये जाते हैंगांव हो या शहर या फिर चौराहों पर भरे समाज में नगा घुमाये जाते हैं मेरा शरीर तब लाशों का ढेर लगता खुशियों की सौगात न लाने वाला हैशर्म जंग खुदी के बोझ हाथों से हजार बार मरता हैही लड़नी होगी मेरा वजूद पर अक्सर मुझे उठता भगवान कोई अवतार न लेने वाला हैनंगा सत्य समाज का दिखाता हैआओ उस आबाद करें गुलिस्तां कोदमन की नीतियों से रू-ब-रू कराता जिसका पत्थर धूल न खाने वाला हैजाति की खाई के गहराई को बताता है हम इंसान होके अछूत कहलाते हैंअक्सर घाव जाति के दिये जाते हैं अच्छे कपड़े में जब भी हम निकलते हैंवह हमें नेता या फिर ठेकेदार कहते हैंसलाम उनको हम जब कभी नहीं करतेतो तिरछी नजर चुनकर हर नींवों से घूरा करते हैं काम न जमा करें उनका, तो बुरा लगता हैपत्थरझुक के जिन ईटों का चलें, दिल उनका खौल उठता ताज बिखरने वाला है हम जाति-पाति की गरीबी पतझड़ों में घुटते कितनी सदियां बीती हैंमगर वो जाति का सर उठा के चलते हैंजब भी हद से ज्यादा वो खौल उठते हैंशोषित बस्तियों पे आग ही उगलते हैं दौलत शोहरत1 एकाधिकार उनका पद दर्द मेरा अब चुप न रहने वाला हैदोनों पर संस्कृति का दाब उनका हैसमाज में मेरा मुकाम मौजे समन्दर1 कुछ भी नहींमेरे सम्मान पे उनका जवाब -कुछ भी नहींबातें करती हैंहम नीच नहीं‘बाग़ी’ गर्म लहू, क्यों अछूत बनके रहना है?हम क्यों करें उनका जो कुछ कहना है समाज अपमान की क्यों बेड़ियाँ पहनाता हैदलित बनाकर क्यों ऐसी सजा सुनाता है शहर से गाँव तक जाल को फैलाये हैंखेत से कंपनी तक लोग उनके छाये हैंहल के पीछे उनके हम हलवाहे हैंखुले आकश में घने उनके साये हैं इस व्यवस्था का तंत्र ही पुराना हैलेकिन इस सारी संस्कृति को मिटाना जब चुप न रहने वाला है
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