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{{KKRachna
|रचनाकार=धनेश कोठारी
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|संग्रह=[[ज्यूंदाळ / धनेश कोठारी]]
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<poem>
जख मा देखि छै आस कि छाया

वी पाणि अब कौज्याळ ह्वेगे

जौं जंगळूं कब्बि गर्जदा छा शेर

ऊंकू रज्जा अब स्याळ ह्वेगे



घड़ि पल भर नि बिसरै सकदा छा जौं हम

ऊं याद अयां कत्ति साल ह्वेगे

सैन्वार माणिं जु डांडी-कांठी लांघि छै हमुन्

वी अब आंख्यों कू उकाळ ह्वेगे



ढोल का तणकुला पकड़ी

नचदा छा जख द्यो-द्यब्ता मण्ड्याण मा

वख अब बयाळ ह्वेगे

जौं तैं मणदु छौ अपणुं, घैंटदु छौ जौं कि कसम

वी अब ब्योंत बिचार मा दलाल ह्वेगे



त अफ्वी सोचा समझा

जतगा सकदां

किलै कि

अब,

दुसरा का भरोसा कू त

अकाळ ह्वेगे
</poem>
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