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13:07, 2 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धनेश कोठारी
|अनुवादक=
|संग्रह=[[ज्यूंदाळ / धनेश कोठारी]]
}}
{{KKCatGadhwaliRachna}}
<poem>
हे भैजी यूं डाळ्यों
अंगुक्वैकि समाळी
बुसेण कटेण न दे
राखि जग्वाली
आस अर पराण छन
हरेक च प्यारी
अन्न पाणि भूक-तीस मा
देंदिन्बिचारी
जड़ कटेलि यूं कि
त दुन्या क्य खाली...........,
कन भलि लगली धर्ति
सोच जरा सजैकि
डांडी कांठी डोखरी पुंगड़्यों
मा हर्याळी छैकि
बड़ी भग्यान भागवान
बाळी छन लठयाळी..........,
बाटौं घाटौं रोप
कखि अरोंगु नि राखि
ठंगर्यावू न तेरि पंवाण
जुगत कै राखि
भोळ्का इतिहास मा
तेरा गीत ई सुणाली.........॥
</poem>