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दारु / धनेश कोठारी

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<poem>
दारु !

पगळीं च बगणि च

डांडी कांठ्यों धारु धारु

पीड़ बिसरौण कु

माथमि, द्यब्तौं सि सारु



गंगा उंद बगदी

दारु उबां-उबां टपदी

पैलि अंज्वाळ् अदुड़ि/

फेर, पव्वा सेर

जै नि खपदी

हे राम! दअ बिचारु



गबळान्दि बाच

ढगड्यांदि खुट्टी

अंगोठा का मुखारा

अंग्रेजी फुकदी गिच्ची

कुठार रीता शरेल् पीता

ठुंगार मा लोण कु गारु



पौंणै बरात

मड़्वयों कु सात

बग्त कि बात

दारु नि हात

त क्य च औकात

छौंदि मा कु खारु



नाज मैंगु काज मैंगु

आज मैंगु रिवाज मैंगु

दारु बोदा त

दअ बै क्य च फारु
</poem>
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