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|संग्रह=[[ज्यूंदाळ / धनेश कोठारी]]
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<poem>
हे द्यूरा!

स्य राजधनि

गैरसैंण कब तलै

ऐ जाली?

बस्स बौजि!

जै दिन

तुमरि-मेरि

अर

हमरा ननतिनों का

ननतिनों कि

लटुलि फुलि जैलि

शैद

वे दिन

स्या राज-धनि

तै गैरा बिटि

ये सैंणा मा

ऐ जाली।
</poem>
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