भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
हमरोॅ छोटोॅ टा एक भूल सेॅ, पूरा जिनगी भेलै बेकार।
केना केॅ आबें जीबोॅ हम्मेॅ, आँखी में नै छै नींद हमार।।हमार।
जानें जखनी की भेलै, हमरोॅ माथा में की घुसलै
पढ़ै-लिखै रोॅ बारे में, कुछु मनोॅ में नै अटलै।
सुनी लेॅ तोंय भगवान, जरलोॅ हमरोॅ कपार।।कपार।
हम्हीं आपनों मुँहोॅ सेॅ, छीनी लेलियै आपन्हैं मुस्कान
हमरोॅ वास्तें रात आरो दिन, काला अक्षर भैंस समान।
की करबै, केना करबै, केना होतै जिनगी उजियार।।उजियार।
अंत-अंत में हम्हूँ पढ़बै, आरो आपनोॅ हिसाब चुकैबै
पढ़ी-लिखी केॅ शिक्षित बनबै, मिली-जुली केॅ साथें रहबै।
चललै साक्षरता अभियान, देखोॅ बुझोॅ सगरोॅ संसार।।संसार।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,479
edits