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<poem>
रंग इश्क़ का प्रिय
देखा नही तुमने --
बेचैन, तड़पती
झुकी निगाह में,
मिलन को तरसते
हृदय की चाह में,
दुपट्टे के कोने से
लिपटी ऊँगलियों में,
तुम्हें देख लाल होते
गालों की सुर्ख़ियों में,
कस के पकड़ी
कलाई के निशान में
पर लगे पैरों की
बेबाक उड़ान में,
रुनझुन बजती
पायल की झंकार में,
मनुहार करते
टीके, बिछुए, हार में
भाल सजी
बिंदिया की चमक में
चुगली करती
चूड़ियों की खनक में --
रंग इश्क़ का प्रिय
क्यों देखा नहीं तुमने !
</poem>
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