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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
|अनुवादक=
|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
}}
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<poem>
आदमी कब आदमी है तुम किसी से पूछ लो
ज़ख़्म-खुर्दा ज़िन्दगी है तुम किसी से पूछ लो।

फूल खिलते थे जहां उस बाग़ में ही आज कल
खून की चादर बिछी है, तुम किसी से पूछ लो।

भारती मां को नहीं है दुश्मनों का डर ज़रा
पर कपूतों से डरी है, तुम किसी से पूछ लो।

दोस्ती की आड़ ले कर पीठ में भोंको छुरी
अब यही मर्दानगी है,तुम किसी से पूछ लो

आज दौलत और रुतबे के लिए लड़ते हैं लोग
प्यार में ही ज़िन्दगी है, तुम किसी से पूछ लो।

सभ्य शहरों और गांवों में भी जंगल-राज की
हो चली अब वापसी है,तुम किसी से पूछ लो।
</poem>
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