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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
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|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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<poem>
मुझको रोके थी अना और यार कुछ मग़रूर था
जिस्म से था सामने, लेकिन हृदय से दूर था।

मैं मदद के वास्ते चीखा किया नाहक़ वहां
घर पड़ोसी के न जाने का जहां दस्तूर था।

हाथ मेरे दोस्तों! इस जुर्म में काटे गये
ताज के कारीगरों में मैं भी इक मजदूर था।

हाथ में सैयाद के मैं क्यों नहीं आता भला
आंख थे ज़ख़्मी मेरे और मैं थकन में चूर था।

क्यों मुझे मिलती तरक़्क़ी आज के माहौल में
सर झुकाना, दुम हिलाना कुछ नहीं मंज़ूर था।

</poem>
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