1,564 bytes added,
13:43, 21 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
|अनुवादक=
|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जीवन में गति लाती है यह सड़कों की धूल
मुझको बेहद भाती है यह सड़कों की धूल।
इससे बढ़कर हमराही यारों अपना कौन
सिह हमेशा जाती है यह सड़कों की धूल।
इस जीवन का दर्द वही, लोग समझ पाए
जिनको रोज़ छकाती है यह सड़कों की धूल।
आये कमाई मेहनत की घर में जब जब भी
जूतों के संग आती है यह सड़कों की धूल।
इसकी फ़ितरत है कुछ कुछ तेरे मेरे सी
रात हुई सो जाती है है यह सड़कों की धूल।
जब बादल बारिश रूप अश्क़ बहाता है
ग़म से नहीं उठ पाती है यह सड़कों की धूल।
होता है अफ़सोस बहुत ' ऋषि' जब जिस तिस का
आंख मर झोंकी जाती है यह सड़कों की धूल।
</poem>