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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
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|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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<poem>
क्यों आसमां ये खुदखुशी करता नहीं
ज़ुल्मो-सितम को देख गिर पड़ता नहीं?

कुछ और कलियाँ आक तोड़ीं जाएंगी
यों बाग़ में माली क़दम रखता नहीं।

गर आदमी खोता नहीं किरदार को
तो कोड़ियों के भाव यों बिकता नहीं।

बाज़ार में भीखू परेशां है खड़ा
सत्तू चने का भी यहां सस्ता नहीं।

ऐ दिल न हो खुश आ गये मेहमान जो
मतलब बिना कोई यहां मिलता नहीं।

</poem>
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