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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
|अनुवादक=
|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
}}
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<poem>
दुश्मनों से तो नहीं हारा वतन
अपने लोगों से गया मारा वतन।

बढ़ गई इतनी सियासत वोट की
आज बन के रह गया नारा वतन।

अपने गद्दारों को भी दे दी शरण
है दया-ममता में ये न्यारा वतन।

जन्म जबसे कुछ कपूतों को दिया
रोता है सिर पीट बेचारा वतन।

हाल पर इसके न उबले खूं क्यों?
जान से भी है हमें प्यारा वतन।

कुछ ठिकाना अपने दिल में दो मुझे
यों करे फरियाद बंजारा वतन।
</poem>
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