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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
|अनुवादक=
|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
}}
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<poem>
उससे था जो फासला वो कम लगा
इस दफा हमसे खफ़ा वो कम लगा।

आज देखा आपको नज़दीक से
जो अभी तक था सुना एओ कम लगा।

यों तो मालिक ने दिया हमको बहुत
पर हमें जो कुछ मिला वो कम लगा।

मुस्कुरा कर बात जब मेरी सुनी
उनसे जो भी था गिला वो कम लगा।

जान देना ही रहा बाक़ी मगर
हमने उनको जो दिया वो कम लगा।

हमसफ़र प्यारा मिला तो दोस्तों
था जो लम्बा रास्ता वो कम लगा।

कुछ नया जब-जब लिखा तो ये लगा
पहले जो कुछ भी लिखा वो कम लगा।


</poem>
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