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|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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<poem>
स्वार्थ के बंधन तोड़ ज़माने
प्यार के रिश्ते जोड़ ज़माने।

मैं न चलूंगा तेरे पीछे
मेरे पीछे दौड़ ज़माने।

मानव पर जो बोझ बनी है
उन रस्मों को तोड़ ज़माने।

खिल के जग को महकाएगी
ये कलियाँ मत तोड़ ज़माने।

सबको कुचल के बढ़ जाने की
क्यों है तुझमें होड़ ज़माने।

आज तलक हम सीख न पाए
तेरे जोड़ और तोड़ ज़माने।

यदि जलने से बचना है तो
प्रेम-चदरिया ओढ़ ज़माने।

</poem>
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