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13:57, 21 मई 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
|अनुवादक=
|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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<poem>
पत्थर को लिए हाथ में वो तोल रहे हैं
गुस्से से मुझे देख के कुछ बोल रहे हैं।
शायद मेरा भी नाम सुनाई दे तुम्हें आज
सरकार मेरे आज ज़ुबाँ खोल रहे हैं।
उन गांवों में नफ़रत का जुनूँ छाने लगा है
कल तक कि जहां प्यार के माहौल रहे हैं।
किरदार को अपने वो सँवारे तो है बेहतर
जिस्मों को सँवारे हुए जो डोल रहे हैं।
खुद से भी सदा बात यहां जिनकी छिपाई
महफ़िल मव वही राज़ मेरा खोल रहे हैं।
अब सांस भी लेना है यहां पर 'ऋषि' मुश्किल
कुछ लोग हवाओं में ज़हर घोल रहे हैं।
</poem>