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10:37, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
सजदे में सिर के साथ दिल भी है झुका करिवर-बदन
अरदास है करिये अता मां शारदे अपनी शरन।
सच्चा सुख़न-परवर बना दें मातु आनंदेश्वरी
इतनी इनायत कीजिये क्षेत्राधिपति बिल्लेश्वरन।
हर नज़्म ख़ुशबूदार हो हर शेर में पैग़ाम हो
सारा अंधेरा खत्म हो निर्मल बने अन्तःकरन।
कर शीश पर हो आपका आलोक भरता ज्ञान का
छूटे न धरती पांव से निर्भीक हो छू लें गगन।
हों भाव नित-नव अंकुरित रचना ऋचा जैसी बनें
रस की करें वर्षा सदा नव चेतना के घन सघन।
बस आपके आशीष से है 'रेत पर उंगली चली'
हर पृष्ठ पर मां सुरसती गौरी तनय रखिये चरन।
मातेश्वरी 'विश्वास' को वह शक्ति दो सामर्थ्य दो
हर आवरण को भेद दे कौतुक लगे आवागमन।
</poem>