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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
जुर्म पर उनके हमें सज़ा हो गई
दोस्ती किस क़दर बेवफ़ा हो गई।

रोते-रोते कहा रख के क़ासिद नर ख़त
फूल वाली गली लापता हो गई।

होश आया ज़ईफ़ी की दहलीज़ पर
जिस्म से जब जवानी हवा हो गई।

दी तसल्ली कलेजे को ये सोच कर
हमसे किस्मत हमारी खफ़ा हो गई।

हम न शायर बुढ़ापे तलक बन सके
वो जवानी में ही शायरा हो गई।

पल वो 'विश्वास' पहचान पाए न हम
किस घड़ी इश्क़ की इब्तिदा हो गई।
</poem>
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