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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
मैं अपने ज़ख़्म दिखलाने नहीं आया
किसी के दिल को तड़पाने नहीं आया।

मुझे इमदाद पहुंचानी थी पहुंचा दी
किसी को चोट पहुंचाने नहीं आया।

भरोसे रब के उतरा जब भी दरिया में
कोई तूफ़ान टकराने नहीं आया।

मेरा कुछ भी नहीं है, सब तुम्हारा, मैं
यहां से कुछ भी ले जाने नहीं आया।

तमन्ना सिर्फ है इंसान बनने की
फ़क़त कपड़ों को रंगवाने नहीं आया।

मेरा दुश्मन है कैसा कुछ खबर लाओ
कई हफ्तों से धमकाने नहीं आया।

शरण गुरु की गया 'विश्वास' जिस दिन से
मुझे शैतान बहकाने नहीं आया।

</poem>
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