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10:47, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कर न अफ़सोस फ़ाक़ाकशी के लिए
गर जिया कौम की बेहतरी के लिए।
इश्क़ में जिसने भी हैं बढ़ाये कदम
फ़िक्र की ही नहीं वापसी के लिए।
ज़िन्दगी को जियो ज़िन्दगी की तरह
ज़िन्दगी ये नहीं खुदकुशी के लिए।
अब सुधरने का मौक़ा न छोड़ेंगे हम
शुक्रिया दोस्त खोटी-खरी के लिए।
ये तबस्सुम तो है दें अल्लाह की
मुफ्त बख़्शा गया हर किसी के लिए।
शर्त है तोड़ दें हम क़सम, तो चलो
'ये भी मंज़ूर है दोस्ती के लिए'।
प्यार करना न आये तो मिलना नहीं
सिर्फ 'विश्वास' से दिल्लगी के लिए।
</poem>