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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
बढ़ गये आगे कदम डर छोड़ हर अंजाम का
आज पीकर देखते हैं जाम उनके नाम का।

बुझ न पाए प्यास दिल की और बढ़ जाये अगर
ये सुराही मयकदा सागर मेरे किस काम का।

ज़िन्दगी में दामने-इंसाफ़ को मत छोडिये
फोडिये मत ग़ैर के सर पर घड़ा इल्ज़ाम का।

मशविरा है कीजिये कुछ आकबत के लिए
ज़िन्दगी भर मत असासा जोड़िए आराम का।

खुद नहीं जिनको पता कुछ, वो भरे-बाज़ार को
फलसफा समझा रहे हैं रौगने बादाम का।

कीजिये ख़ैरात हर दिन एक धेले की भले
और लेना हो अगर लो नाम अपने राम का।

चोट से ज़ख़्मी तराशा जा सका दागी न जो
कल बिका 'विश्वास' हीरा कोड़ियों के दाम का।

</poem>
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