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10:55, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हर बार ढूंढी खामियां उसके नसीब की
जब जब बिकी बाज़ार में बच्ची गरीब की।
जब चाहता लेता बना तस्वीर बेझिझक
भूली न उसको आज तक सूरत हबीब की।
जब जब ख़ुदा का नाम लेकर दी गई दवा
लाई असर बीमार पर हिकमत तबीब की।
क्या जंग थी जब ज़िन्दगी हारी न मौत से
हर बार बिखरी टूट कर रस्सी सलीब की।
अशआर बिकते देख कर रोया बहीत क़लम
जब ग़ैर के हक़ में कोई शोहरत अदीब की।
सिखला गया जुगनू हमें ऐसे जियो मियां
कुछ तो उजाला पा सके बस्ती क़रीब की
अपना लिया हमने उन्हें 'विश्वास' शान से
जो खूबियां अच्छी लगीं हमको रक़ीब की।
</poem>